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Sunday, 9 December 2012

भारत में महिलाओं की स्थिति सबसे बुरीः सर्वे

दुनिया के कुछ संपन्न देशों में महिलाओं की स्थिति के बारे में हुए एक शोध में भारत आख़िरी नंबर पर आया है.

थॉम्सन रॉयटर्स फ़ाउंडेशन के इस सर्वेक्षण में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और हिंसा जैसे कई विषयों पर महिलाओं की स्थिति की तुलना ली गई.

स्थिति जानने के लिए इन देशों में महिलाओं की स्थितियों का अध्ययन करनेवाले 370 विशेषज्ञों की राय ली गई.

सर्वेक्षण 19 विकसित और उभरते हुए देशों में किया गया जिनमें भारत, मेक्सिको, इंडोनेशिया, ब्राज़ील सउदी अरब जैसे देश शामिल हैं.

भारत के पड़ोसी पाकिस्तान और बांग्लादेश सर्वेक्षण में शामिल नहीं किए गए.

सर्वेक्षण में कनाडा को महिलाओं के लिए सर्वश्रेष्ठ देश बताया गया. सर्वेक्षण के अनुसार वहाँ महिलाओं को समानता हासिल है, उन्हें हिंसा और शोषण से बचाने के प्रबंध हैं, और उनके स्वास्थ्य की बेहतर देखभाल होती है.

पहले पाँच देशों में जर्मनी, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस जैसे देश रहे. अमरीका छठे नंबर पर रहा.

भारत

सर्वेक्षण में भारत की स्थिति को सउदी अरब जैसे देश से भी बुरी बताया गया है जहाँ महिलाओं को गाड़ी चलाने और मत डालने जैसे बुनियादी अधिकार हासिल नहीं हैं.

सर्वेक्षण कहता है कि भारत में महिलाओं का दर्जा दौलत और उनकी सामाजिक स्थिति पर निर्भर करता है.

भारत के 19 देशों की सूची में सबसे अंतिम पायदान पर रहने के लिए कम उम्र में विवाह, दहेज, घरेलू हिंसा और कण्या भ्रूण हत्या जैसे कारणों को गिनाया गया है.

सर्वेक्षण में कहा गया कि भारत में सात वर्ष पहले बना घरेलू हिंसा क़ानून एक प्रगतिशील कदम है, मगर लिंग के आधार पर भारत में हिंसा अभी भी हो रही है.

इसके अनुसार विशेष रूप से अल्प आय वाले परिवारों में ऐसी हिंसा अधिक होती है.

भारत में ऐसी बहुत सारी महिलाएँ हैं जो सुशिक्षित और पेशेवर हैं और उन्हें हर तरह की आजादी और पश्चिमी जीवन शैली हासिल है.

सर्वेक्षण कहता है कि भारत में पहले एक महिला प्रधानमंत्री रह चुकी है और अभी देश की राष्ट्रपति एक महिला है, मगर ये तथ्य गाँवों में महिलाओं की स्थिति से कहीं से भी मेल नहीं खाते.

सर्वेक्षण के अनुसार भारत में दिल्ली और इसके आस-पास आए दिन महिलाओं के राह चलते उठा लिए जाने और चलती गाड़ी में सामूहिक बलात्कार होने की खबरें आती रहती हैं.

अखबारों में भी देह व्यापार के लिए महिलाओं की तस्करी और शोषण की खबरें छपती रहती हैं.

सर्वेक्षण कहता है कि कई मामलों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाज में स्वीकार्य भी समझा जाता है.

इसमें एक सरकारी अध्ययन का उल्लेख किया गया है, जिसमें 51 प्रतिशत पुरूषों और 54 प्रतिशत महिलाओं ने पत्नियों की पिटाई को सही ठहराया था.

बुधवार, 13 जून, 2012 हिंदी बी बी सी समाचार

अकेले रहने वाले लोगों में डिप्रेशन का खतरा

एक अध्ययन के अनुसार वे लोग जो अकेले रहते हैं, उनमें परिवार के साथ रह रहे लोगों की तुलना में डिप्रेशन में जाने का खतरा ज्यादा होता है। वास्तव में कामकाजी लोग जो अकेले रहते हैं उनमें डिप्रेशन विकसित होने का खतरा 80 % बढ जाता है। अध्ययन के अनुसार, कामकाजी पुरूषों और महिलाओं के बीच में डिप्रेशन का प्राथमिक कारक सामाजिक समर्थन प्रणाली की कमी पुरूषों में और महिलाओं में घर की खराब स्थिति है। 

यह अध्ययन 3500 पुरूषों और महिलाओं पर नजर रखकर एण्टी डिप्रेसेंट का प्रयोग करके किया गया। जो लोग अकेले या किसी के साथ रहते थे उनपर 2000 में सर्वे किया गया और उनके रहन-सहन की स्थिति के बारे में पूछताछ की गई। इसके अलावा उन लोगों के बारे में जलवायु, जीवनशैली, सामाजिक समर्थन, कर्मचारी की स्थिति, आय और अन्य जानकारी भी जुटाई गई। अध्ययन करने वाले लेखक ने पाया कि अकेले रहने वाले व्यक्ति के घर में विकास हुआ है। अवसादरोधी के सेवन करने वालों का विश्लेषण करने के पीरियड में यह पाया कि जो लोग अकेले रहते हैं उनमें 80% लोगों ने एण्टी डिप्रेसेंट दवाईयां ज्यादा खरीदी हैं उन लोगों की तुलना में जो अकेले नहीं रहते हैं। 

यह अध्ययन डा पुलक्की रेबेक के नेतृत्व में हुआ, उन्होंने कहा कि दिमागी समस्याओं का खतरा अकेले रहने वाले लोगों में ज्यादा होता है। शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया कि अकेले रहने वाले लोगों में डिप्रेशन एकांत में रहने के कारण होता है। शोधकर्ताओं के अनुसार जो लोग अकेले रहते हैं उनके जज्बातों के लिए भावनात्मक सहारा या समाजिक एकता की भावना नहीं होती है और इसकी वजह से गंभीर दिमागी बीमारी होती है। 

अध्ययन में यह समाधान निकाला गया कि जो लोग अकेले रहते हैं उनको अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए लोगों से मिलना चाहिए और नयी संस्कृति और सामाजिक परिवेश को जानने के लिए एक मंच होना चाहिए। इसके अलावा अध्ययन में यह उजागर हुआ कि जो लोग अकेले रहते हैं उनके उचित इलाज के लिए बातचीत ही बेहतर थेरेपी है। क्योंकि एण्टी डिप्रेसेंट (anti-depressants) का साइड-इफेक्ट लंबे समय तक के लिए हो सकता है।

स्त्रोत : नचिकेता शर्मा , ओन्‍ली माई हैल्‍थ सम्पादकीय विभाग, 14-04-2012

बेटी चाहते हैं ? सुन्दर पार्टनर ढूंढिए

क्या आप भी बेटी चाहते हैं अगर हां तो अपने लिए एक सुन्दर पार्टनर तलाश कीजिए। क्योंकि एक शोध के मुताबिक सुन्दर दिखने वाले जोड़ों की बेटी पैदा होने की संभावना ज्यादा होती है। रिप्रोडक्टिव साइंसेज में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार सुन्दर औरतों और मर्दों में कम सुन्दर दिखने वालों की तुलना में बेटी होने की संभावना ज्यादा होती है।

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की विकासवादी मनोविज्ञानी सातोषी कानजवा ने मार्च 1958 में ब्रिटेन में जन्मे 1700 बच्चों का अध्ययन किया है। उन्होंने सभी बच्चों के बारे में उनके जीवन के अनेक स्तरों का अध्ययन किया। अध्ययन में यह देखा गया कि स्कूल और कॉलेज में इन बच्चों को उनके शिक्षकों ने सुन्दर कहा या बदसूरत। और 45 साल की उम्र में इन्हीं लोगों से उनके बच्चों और बच्चों के लिंग के बारे में पूछा गया।

सभी आंकड़ों को जमा करने के बाद कानजवा ने पाया कि अध्ययन के लिए लिए गए नमूने वाले लोगों में से 84 प्रतिशत लोगों को बेटे और बेटियां दोनों हुई, जबकि जो लोग खूबसूरत नहीं थे उन्हें बेटे ज्यादा हुए।

कानजवा ने कहा कि शारीरिक तौर पर सुन्दर होना कन्या शिशु तय करने के लिएएक मजबूत निर्धारक है। औसतन बदसूरत लोगों में से 56 में बेटे के माता-पिता बनने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। उनका मानना है कि हम बच्चों के लिंग को सुन्दरता के साथ जोड़कर जिस लिंग के बच्चे चाहें पैदा कर सकते हैं।

मर्दों के लिए यह बात हमेशा आसान रहती है, क्योंकि वे शादी के रिश्ते में हों या फिर अफेयर की बात हो अपने लिए एक सुन्दर पार्टनर ही खोजते हैं। मगर औरतें सिर्फअफेयर के लिए ही सुन्दरता को देखती हैं, दीर्घकालिक बंधन के लिए वे हमेशापैसे, सामाजिक स्थिति जैसी चीजों को देखती हैं।
स्त्रोत : शोध व् शेर्वे प्रस्तुतकर्ता बी एस पाबला पर 5:00 am , लेबल: रिश्ते, शारीरिक सम्बन्ध, सुन्दरता, बृहस्पतिवार, 16 जून 2011 

Wednesday, 24 October 2012

बुद्धिमान भी होते हैं सुंदर लोग!

शोधकर्ताओं ने अध्ययन में नतीजा निकाला कि जब पुरुष किसी सुंदर स्त्री से मिलते हैं तो वे उसके प्रभाव में आ जाते हैं, जबकि स्त्री किसी पुरुष से मिलती है तो उसका ध्यान सुंदरता के अलावा अन्य बातों पर भी जाता है, लिहाजा वह बहुत प्रभावित नहीं होती।

नोबल पुरस्कार प्राप्त और ब्लैक कॉमेडी के लिए चर्चित साहित्यकार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के सामने किसी खूबसूरत अभिनेत्री ने शादी का प्रस्ताव रखते हुए कहा, अगर वे शादी कर लें तो बच्चे उसकी तरह खूबसूरत होंगे और जॉर्ज की तरह विद्वान भी। जॉर्ज ने मुसकराते हुए जवाब दिया, अगर इसका उल्टा हो गया तो?

दरअसल शॉ के समय में वह शोध नहीं हुआ था, जिसकी चर्चा हम यहां करने वाले हैं। खूबसूरती और दिमाग का मेल नहीं होता..अब तक तो यही माना जाता रहा है। लेकिन अब एक ताजा शोध में कहा जा रहा है कि सुंदर लोग तेज-तर्रार भी होते हैं। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स द्वारा कराए गए एक अध्ययन के मुताबिक सुंदर स्त्री-पुरुष तेज दिमाग वाले होते हैं और उनका आइक्यू स्तर भी औसत से 14 पॉइंट अधिक होता है। ब्रिटेन में हुए इस अध्ययन के अनुसार सुंदर पुरुषों का आइक्यू स्तर औसत से 13 पॉइंट अधिक और सुंदर स्त्रियों का 11 पॉइंट अधिक होता है।

दिल्ली की मनोवैज्ञानिक डॉ. अनु गोयल कहती हैं, शोध कई आधारों पर किए जाते हैं। उसके नतीजे वैज्ञानिक, सामाजिक और व्यावहारिक आधार पर निकाले जाते हैं। वास्तविक जीवन में ज्यादातर यह देखा गया है कि योग्य लोग सामान्य शक्ल-सूरत वाले होते हैं। सच यह है कि आइक्यू प्रकृति प्रदत्त होता है। उसे बनाया नहीं जा सकता, लेकिन उसे निखारा जा सकता है। योग्यता, ज्ञान, आईक्यू को अभ्यास से विकसित किया जा सकता है।

सौंदर्य का विज्ञान

एक शोध में यह भी पाया गया कि पीढी दर पीढी स्त्रियों की खूबसूरती निखर रही है, जबकि पुरुषों में इस विकास की रफ्तार धीमी है। हेलसिंकी विश्वविद्यालय में हुए इस शोध के मुताबिक सुंदर स्त्रियों की प्रजनन क्षमता भी अधिक होती है। इससे पहले लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में हुए एक शोध में पाया गया था कि सुंदर स्त्रियों में इस बात की संभावना अधिक होती है कि उनकी संतान में कन्या शिशु की संख्या ज्यादा हो।

पुरुषों का सौंदर्यबोध

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सुंदरता को लेकर स्त्री-पुरुष की सोच अलग होती है। स्त्री के लिए सुंदरता से अधिक महत्व इस बात का होता है कि उसका साथी उसे कितनी सुरक्षा प्रदान कर सकता है। इसके अलावा बीमारी, गर्भावस्था या जीवन के कुछ नाजुक लमहों में वह उसका कितना खयाल रख सकता है। वहीं पुरुष के लिए सामान्य तौर पर सुंदरता ही अधिक मायने रखती है।

नीदरलैंड विश्वविद्यालय में हुआ एक सर्वे यह भी बताता है कि खूबसूरत स्त्रियों से बातचीत करते समय पुरुष बाकी बातें भूल जाते हैं। जबकि स्त्रियों को पुरुषों की सुंदरता इस तरह प्रभावित नहीं करती।

यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिकों ने कुछ छात्रों पर यह प्रयोग किया। उन्हें एक मेमरी टेस्ट करने को दिया गया। इसके बाद उन्हें सात मिनट तक किसी स्त्री से बातें करने को कहा गया। सात मिनट बाद एक बार फिर उन्हें टेस्ट में दिए गए तथ्य दोहराने को कहा गया तो ज्यादातर छात्रों का प्रदर्शन खराब रहा, जबकि छात्राओं ने ऐसी स्थिति में तुलनात्मक रूप से बेहतर प्रदर्शन किया। शोधकर्ताओं ने अध्ययन में नतीजा निकाला कि जब पुरुष किसी सुंदर स्त्री से मिलते हैं तो वे उसके प्रभाव में आ जाते हैं, जबकि स्त्री किसी पुरुष से मिलती है तो उसका ध्यान सुंदरता के अलावा अन्य बातों पर भी जाता है, लिहाजा वह बहुत प्रभावित नहीं होती।

सुंदरता है बाधक भी

भले ही सुंदर स्त्रियां सभी को आकर्षित करती हों, लेकिन एक कडवा सच यह भी है कि ऐसी स्त्रियां कार्यस्थल में भेदभाव की शिकार होती हैं। यू.के. में हुए एक शोध के मुताबिक इंजीनियर्स, निर्माण कार्य, वित्त क्षेत्र, सुरक्षा के अलावा शोध व विकास संबंधी क्षेत्रों में सुंदरता दरअसल स्त्रियों के लिए बाधक ही साबित होती है। यूसी डेनवर बिजनेस स्कूल की सहायक प्रोफेसर स्टीफन जॉनसन के अनुसार, पुरुष वर्चस्व वाले क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाने में स्त्रियों को काफी परेशानी व चुनौती का सामना करना पडता है। वह आगे कहती हैं, लेकिन इससे स्त्रियों को दुखी नहीं होना चाहिए, क्योंकि अन्य क्षेत्रों में उन्हें प्राथमिकता भी दी जाती है। कुछ खास क्षेत्र तो उन्हीं के लिए सुरक्षित समझे जाते हैं। वैसे सामान्य जीवन में पाया गया है कि सुंदर व प्रभावशाली लोग नौकरियों में भी महत्वपूर्ण पद हासिल करते हैं।
सखी फीचर्स
स्त्रोत : जागरण!

Tuesday, 6 March 2012

फायदे आल्मंड ऑयल के

*बादाम तेल का इस्तेमाल बाहर से किया जाए या फिर इसका सेवन किया जाए, यह हर लिहाज से उपचारी और उपयोगी साबित होता है।

*हर रोज रात को 250 मि.ग्रा. गुनगुने दूध में 5-10 मि.ली. बादाम का तेल मिलाकर सेवन करना लाभदायक है।

*त्वचा को नर्म, मुलायम बनाने के लिए भी आप इसे लगा सकते हैं।

*नहाने से 2-3 घंटे पहले इसे लगाना आदर्श है। बादाम तेल की मालिश न सिर्फ बालों के लिए अच्छी है, बल्कि मस्तिष्क के विकास में भी फायदेमंद है। सप्ताह में एक बार बादाम तेल की मालिश गुणकारी है।-Date: 3/6/2012 12:35:19 AM, Punjab Kesri

Monday, 5 March 2012

कैंसर होने से रोकता है जीरा!

कैंसर को दुनिया भर में सर्वाधिक कष्टकारी रोग माना जाता है। यह शरीर के अनेक भागों में होता है। शरीर के जिस भाग में होता है, उसको खराब कर देता है। हमारे दैनिक खानपान में मसाले की श्रेणी में शामिल जीरा इस रोग में दवा का काम करता है। भोजन को पाचक बनाने वाला जीरा सेवनकत्र्ता को गैस मुक्त भी करता है। भारतीय रसोई घरों में सब्जियों में तड़का लगाने के लिए बहुतायत में प्रयोग होने वाले जीरे में कैंसर की रोकथाम करने की शक्ति है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जीरे में ‘करक्यूमिन एंजाइम’ रहता है जो कैंसर के ट्यूमर को नई रक्त शिराओं का विकास करने से रोकता है।-Date: 3/5/2012 6:46:16 AM, Punjab Kesri 

लाइलाज बीमारियों की दवा-हड़बड़ाहट छोड़ें

खाना खाते समय बस इतनी सी बात ध्यान रख लेंगे तो कभी मोटे नहीं होंगे! भागती दौड़ती दुनिया में समय की कमी के कारण हड़बड़ाहट हर क्षेत्र में देखी जा सकती है। किसी को ऑफिस पहुंचने की जल्दी है, तो किसी की ट्रेन या बस पकडऩे की जल्दी, क्या बच्चे, क्या जवान, बस हड़बड़ाहट ही हड़बड़ाहट, तनाव ही तनाव।

हमारे पूर्वजों की जीवनशैली को देखा जाय,तो उन्हें शायद इस प्रकार की हड़बड़ाहट नहीं थी, तभी तो उनकी औसत उम्र हमसे कहीं अधिक थी। ज्यादा पुरानी बात नहीं है ,आप गुजरे जमाने की ब्लैक एंड व्हाईट फिल्मों को ही देख लें ,प्रेमियों और प्रेमिकाओं के पास प्यार के तराने गाने के लिए भी फुर्सत के क्षण थे ,पर आज इस क्षेत्र में भी हड़बड़ाहट साफ देखी जा सकती है। 

इन सबका प्रभाव हमारी दिनचर्या पर पड़ता है, चाहे वो खाना हो,या ठीक ढंग से सोना। बड़े बुजुर्गों ने कहा था कि खाना हमेशा तनाव मुक्त होकर धीरे-धीरे चबाकर खाना चाहिए, पर आज इसकी भी फुर्सत कहां। लेकिन हमारे बुजुर्गों की बातों को आज के वैज्ञानिक भी अक्षरश: दुहरा रहे हैं। धीरे-धीरे चबाकर खाने से आपके द्वारा लिए गए भोजन का संतुलित पाचन तो होता ही है, साथ ही वजन कम करने में भी मदद मिलती है। यूनिवॢसटी ऑफ रोड आईलैंड के शोधकर्ताओं के दो अध्ययन इस बात को प्रमाणित कर रहे हैं।

इस अध्ययन में यह पाया गया है , कि पुरुषों की हड़बडाहट खाने-पीने के मामलों में महिलाओं की अपेक्षा अधिक होती है, ठीक ऐसे ही मोटे लोगों की हड़बड़ाहट दुबलों की अपेक्षा खाने-पीने में अधिक पायी गयी है। यह भी देखा गया है, कि हम साबुत अनाज की अपेक्षा रीफाईंड अनाज को जल्दी खा लेते हैं। एसोसियेट प्रोफेसर आफ न्युट्रीसन केथलीन मीलेंसन एवं स्नातक छात्रा एमेली पोंटे एवं अमान्डा पोंटे का यह शोध अध्ययन ओरलेंडो में हुए ओबेसीटी सोसाइटी के सालाना कांफ्रेंस में प्रस्तुत किया गया है।

Saturday, 3 March 2012

विटामिन की एक गोली खाइये और त्वचा के कैंसर से बचिये!

लंदन: वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि आप त्वचा के कैंसर से बच कर रहना चाहते हैं तो रोज विटामिन की एक गोली लेने से ऐसा संभव हो सकता है। एक नये अध्ययन में यह बात सामने आई है कि रोज विटामिन ए की खुराक लेने से त्वचा के कैंसर के सबसे भीषण स्वरूप ‘मेलानोमा’ को दूर रखा जा सकता है।

डेली मेल में छपी खबर के अनुसार, विटामिन ए का प्रमुख तत्व ‘रेटिनोल’ खासतौर पर महिलाओं को इस बीमारी से बचा सकता है। हालांकि इस अध्ययन में यह भी साफ किया गया है कि इसका संबंध विटामिन ए युक्त खाद्य पदार्थ जैसे गाजर, अंडे और दूध से नहीं है।‘कैसर परमानेंट नार्दन कैलिफोर्निया डिवीजन ऑफ रिसर्च’ ने ऐसे 70 हजार लोगों का अध्ययन किया जो अपने खाने में विटामिन ए लेते थे।

इसमें पाया गया कि विटामिन ए लेने वाले लोगों को त्वचा का कैंसर होने की संभावना 60 प्रतिशत तक कम होती है। साथ ही जो लोग एक दिन में इस विटामिन की 1200 मिलीग्राम खुराक ले रहे थे उनको त्वचा के कैंसर की 74 प्रतिशत तक कम संभावना होती है।-Date: 3/2/2012 3:38:11 PM, Punjab Kesri

दही बीमारी दूर भगाए

अब वैज्ञानिक एवं शोधकत्र्ता भी दही के कायल हो गए हैं। दही में विद्यमान बैक्टीरिया हमारे लिए मित्र हैं। ये पेट की सभी बीमारियों को दूर करते हैं। इतना ही नहीं, ये हमें बी.पी., हृदय रोग आदि के खतरों से बचाते हैं। डायबिटीज, फ्लू, एलर्जी आदि बीमारियों को दूर करते हैं। ये पाचन तंत्र सही करते हैं व वजन को संतुलित रखते हैं। पसीने की दुर्गंध, मुंह की दुर्गंध, सर्दी-जुकाम आदि में भी दही का उपयोग हितकर है। दही एवं उससे बनी चीजों को अपने आहार में शामिल करें किन्तु सीमित मात्रा में खाएं।-Date: 3/3/2012 6:32:20 AM, Punjab Kesri

Thursday, 1 March 2012

बी.पी. व शूगर की अनदेखी से ब्रेन अटैक

बीमारी कोई भी हो, उसके प्रति लापरवाही बरतने से सदैव बड़ा नुक्सान होने का खतरा बढ़ जाता है। बी.पी. एवं शूगर दो ऐसे रोग हैं, जिनके मरीज अब ज्यादा हैं। इनके रोगी यदि बीमारी के प्रति ढिलाई बरतते हैं तो ये बढ़कर कभी भी विपत्ति ला सकते हैं। इन दोनों की अनदेखी से मस्तिष्क आघात अर्थात ब्रेन अटैक, ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बना रहता है।

यह दो तरह का होता है। नसें फट जाती हैं या नसों में रक्तस्राव होता है। हार्ट अटैक के बाद ब्रेन अटैक मृत्यु एवं विकलांग होने का बड़ा कारण माना जाता है। गुर्दे की बीमारी, चर्बीयुक्त भोजन, धूम्रपान, मदिरापान से ब्रेन अटैक की आशंका एवं खतरा बढ़ता है।-Date: 1/3/2012 4:16:20 AM, Punjab Kesri

Wednesday, 29 February 2012

दिल के रोगियों के लिए ठंडी हवा खतरनाक

वाशिंगटन: ठंडी हवा दिल के रोगियों के लिए खतरनाक होती है। खासकर जब वे शारीरिक सक्रियताओं में व्यस्त हों तब तो यह और भी खतरनाक हो सकती है। इसकी वजह इन रोगियों के शरीर में ऑक्सीजन की अधिक आपूर्ति न हो पाना है। पेन स्टेट कॉलेज ऑफ मेडीसिन के प्रोफेसर लॉरेंस आई.शिनॉय कहते हैं, ‘‘इस अध्ययन से हम यह समझ सकते हैं कि दिल की बीमारियों में ठंडी हवा क्यों खतरनाक है।’’

व्यायाम के दौरान ठंडी हवा में सांस लेने से दिल में ऑक्सीजन का समान रूप से वितरण नहीं होता, लेकिन एक स्वस्थ शरीर में यह परेशानी नहीं होती, क्योंकि वहां सामान्य रूप से खून का दोबारा एक समान वितरण हो जाता है। इसके लिए जरुरी है कि आपका दिल सामान्य रुप से काम करता हो।

एप्लाइड फिजियोलॉजी जर्नल व अमेरिकन जर्नल ऑफ फिजियोलॉजी, हार्ट एंड सर्कुलेटरी फिजियोलॉजी की रपट के मुताबिक शिनॉय कहते हैं कि जिन लोगों में दिल को खून पहुंचाने वाली धमनी (कोरोनरी आर्टरी) में परेशानी होती है, उनके लिए ठंडी हवा नुकसानदेह नहीं हो सकती। पेन स्टेट से जारी वक्तव्य के मुताबिक शिनॉय कहते हैं, ‘‘यदि आप कोई शारीरिक काम कर रहे हैं और ठंडी हवा में हैं तो ऑक्सीजन ग्रहण करने के लिए आपके दिल को ज्यादा काम करना पड़ता है।’’यही वजह है कि दिल का दौरा पडऩे से ज्यादातर मौतें सर्दियों में होती हैं। शिनॉय के सहायक मैथ्यू डी. मुलर कहते हैं कि ठंडी हवा में दिल में ऑक्सीजन की आवश्यकता बढ़ जाती है जबकि ऑक्सीजन आपूर्ति भी प्रभावित होती है।-Date: 2/29/2012 6:23:03 PM, Punjab Kesri

सिगरेट छोडऩे के 5 साल बाद भी मधुमेह की चपेट में आने का खतरा!

नेशनल कैंसर सेंटर के शोधकर्ताओं के एक दल ने अपने शोध में पाया है कि धूम्रपान छोडऩे के पांच साल बाद तक भी सिगरेट पीने वालों के मुधमेह की चपेट में आने का खतरा बना रहता है।40 से 69 आयु वर्ग के 59 हजार लोगों पर 1990 से 2003 के बीच किए गए शोध में इस बात की पुष्टि हुई है कि धूम्रपान करने वालों के मधुमेह की चपेट में आने की आशंका अधिक रहती है और धूम्रपान छोडऩे के पांच साल बाद भी सिगरेट पीने वाले महिलाओं और पुरूषों में इस बीमारी के उभरने की संभावना 2.84 फीसदी होती है। लेकिन पांच साल के बाद सिगरेट छोडऩे वालों को धूम्रपान का खतरा धूम्रपान नहीं करने वाले लोगों के समान ही होता है।-Date: 2/29/2012 3:45:15 PM, Punjab Kesri

सूप कैलोरी घटाने में सहायक!

खानपान की वैश्विकता के कारण सूप भी सर्वव्यापी हो गया है। यह घर से लेकर होटलों तक में मिल जाता है। यह अनाज, दाल, फल, फूल, सब्जी, मटन, मेवा आदि किसी से भी बनाया जा सकता है। यह घरों में परम्परागत रूप से एवं होटलों में व्यावसायिक रूप से बनाया जाता है। घर में बना सूप कम कैलोरी वाला एवं होटलों में बना सूप अधिक ऊर्जा वाला होता है। मक्खन के बिना बना सूप कैलोरी घटाने में सहायक होता है। सूप भूख बढ़ाता है, पाचक होता है। सूप लेने वाला व्यक्ति कम खाता है, इसीलिए यह वजन घटाने एवं बी.पी., शूगर को काबू में रखने में सहायक होता है।-Date: 2/29/2012 3:54:29 AM, Punjab Kesri 

समय पूर्व मौत की वजह बन सकती हैं नींद की गोलियां

लंदन : नींद की गोलियां लेने के आदी हो चुके लोगों के लिए सावधान हो जाने की खबर है। एक अध्ययन की मानें तो निरंतर नींद की गोलियां लेने वालों की समय पूर्व मौत का खतरा 5 गुना तक बढ़ जाता है। ‘ब्रिटिश मैडीकल जर्नल ओपेन’ में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि जिन लोगों ने साल भर में नींद की कम से कम 18 गोलियां लीं उनकी मौत की आशंका किसी दवा का सेवन नहीं करने वालों की तुलना में कहीं ज्यादा होती है। शोधकत्र्ताओं का कहना है कि जितनी ज्यादा नींद की गोलियां ली जाएंगी, समय पूर्व मौत की आशंका उतनी बढ़ जाती है। समाचार पत्र ‘डेली मेल’ के मुताबिक विशेषज्ञों का कहना है कि गोलियां ले रहे मरीजों को तत्काल इसे बंद नहीं करना चाहिए, उन्हें अपने पहले अपने डाक्टर से बातचीत करनी चाहिए।

अध्ययन के लिए अमरीकी शोधकत्र्ताओं ने नींद की गोलियां लेने वाले 10,500 से अधिक मरीजों पर अध्ययन किया। अध्ययन में 23,500 ऐसे लोगों को शामिल किया गया जो नींद की गोलियां अथवा अन्य कोई दवा नियमित तौर पर नहीं लेते हैं। शोधकत्र्ताओं ने पाया कि नींद की गोलियां लेने वाले लोगों की समय पूर्व मौत का खतरा सामान्य लोगों के मुकाबले करीब 5 गुना ज्यादा हो जाता है।-Date: 2/29/2012 3:56:43 AM, Punjab Kesri

Tuesday, 28 February 2012

बैठकों में शरीक होने से कम होती अक्ल?

अगर आप अपने दफ्तर में रोजाना बैठकों में शामिल होते हैं तो सावधान हो जाइए, क्योंकि इससे आपकी सोचने-समझने की क्षमता धीरे-धीरे खत्म हो सकती है। यह चौंकाने वाला दावा एक अध्ययन में किया गया है।
अमेरिका के ‘वर्जीनिया टेक क्रिलियन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ का कहना है कि बैठकों में शामिल होने वालों के बुद्धि स्तर (आईक्यू) की जांच की गई तो वह अन्य लोगों के मुकाबले काफी कम रही।

अध्ययन में कहा गया है कि बैठकों में शामिल होने के बाद महिलाओं में सोचने-समझने की क्षमता पुरुषों के मुकाबले ज्यादा प्रभावित होती है। समाचार पत्र ‘डेली टेलीग्राफ’ के मुताबिक अध्ययन का नेतृत्व करने वाले रीड मोंटाग ने कहा, ‘‘आप इसको लेकर मजाक बना सकते हैं कि बैठकों में शामिल होने से कैसे दिमाग पर बुरा असर होता है, लेकिन अध्ययन के नतीजे ये बता रहे हैं कि बैठकें आपकी अक्ल को प्रभावित कर सकती हैं।’’

अध्ययन में दो विश्वविद्यालयों के छात्रों को शामिल किया गया, जिनका आक्यू एक दूसरे के मुकाबले औसतन 126 था। बैठकों में शामिल होने के बाद जब इनके कामकाज को लेकर अध्ययन किया गया तो पता चला कि इनकी क्षमता बैठकों में शामिल नहीं होने वाले अपने सहकर्मियों के मुकाबले कहीं कम हो गई है-Date: 2/28/2012 6:53:27 PM

मस्तिष्क को बूढ़ा होने से रोकने में मदद करता है मछली का तेल!

वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि मछली खाने से आपको अपने मस्तिष्क को जवां रखने में मदद मिल सकती है। दरअसल, वैज्ञानिकों ने पाया कि आहार में ‘ओमेगा...3 फैट्टी एसिड’ की कमी के चलते मस्तिष्क के संकुचन और मानसिक क्षय में तेजी आती है।

केलिफोर्निया विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि मछली में पाया जाना वाला एक प्रमुख पोषक तत्व ‘ओमेगा...3 फैट्टी एसिड’ कम मात्रा में लेने से मस्तिष्क पर असर पड़ता है।

गौरतलब है कि आहार में इसे कम मात्रा में लेने से याददाश्त पर असर पड़ता है, समस्या समाधान करने की क्षमता, कई काम एक साथ करने और सोचने की क्षमता कम हो जाती है। माना जाता है कि मछली के तेल में पाया जाने वाला यह पदार्थ मस्तिष्क के विकास में अहम भूमिका निभाता है।-Date: 2/28/2012 6:16:42 PM, Punjab Kesri

महिलाओं में असीमित होता है अंडाणुओं का बनना

लंदन: वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि महिलाओं के गर्भाशय में असीमित समय तक अंडाणुओं का निर्माण होता रहता है और एक समय ऐसा आएगा, जब उनके लिए अधिक उम्र में भी मां बनना संभव हो सकेगा। अमेरिका में मैसाचुसेट्स जनरल हास्पिटल की अगुवाई में वैज्ञानिकों के एक दल ने पाया है कि महिलाओं के गर्भाशय में स्टेम सेल होती हैं, जिनकी मदद से लैग में ‘‘अपने आप’’ अंडाणुओं का निर्माण किया जा सकता है।

पहले ऐसा माना जाता रहा है कि महिलाओं में जन्म के समय ही तय हो जाता है कि उनके गर्भाशय में कितने अंडाणु होते हैं और ये रजोनिवृत्ति के चरण तक पहुंचते-पहुंचते धीरे-धीरे कम होना शुरु हो जाते हैं, लेकिन मुख्य शोधकर्ता डा. जोनाथन टिली ने कहा है कि नया शोध इस पुरानी मान्यता को ध्वस्त करता है। सबसे पहले इस संबंध में 2004 में चूहों पर शोध किया गया था।

नेचर जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि वैज्ञानिकों ने उन मानवीय स्टेम सेल की पहचान करने और उन्हें हासिल करने में सफलता हासिल की है जो अंडाणु में परिवर्तित होते हैं, क्योंकि इन सभी में एक अनोखा प्रोटीन डीडीएक्सफोर होता है। जब इन्हें लैब में बनाया गया तो ये अपने आप अपरिपक्व अंडाणुओं में तब्दील हो गईं। ये कोशिकाएं जीवंत मानवीय गर्भाशय उतकों के संपर्क में आने पर ‘‘परिपक्व’’ हो गईं, जिन्हें चूहों में रोपा गया था।-Date: 2/27/2012 2:26:04 PM, Punjab Kesri

Monday, 27 February 2012

दिमाग में गड़बड़ी से पैरों में तकलीफ

जो लोग पैरों की तकलीफ से परेशान रहते हैं, उन्हें अपने दिमाग की जांच करानी चाहिए। न्यूरो साइंसिज रिसर्च आस्ट्रेलिया के एक शोध अध्ययन के मुताबिक दिमागी गड़बड़ी से पैरों में तकलीफ हो सकती है। शोध के अनुसार शारीरिक गतिविधियों का नियंत्रण दिमाग से होता है। जब दिमाग का यह भाग काम करना बंद कर देता है तब पैरों में पीड़ा, उत्तेजना एवं तकलीफ होती है। बीस व्यक्तियों में से एक व्यक्ति इस तरह की तकलीफ से परेशान रहता है। ऐसे लोग रात को ठीक प्रकार से सो नहीं पाते हैं। यह परेशानी वंशानुगत रूप से आगे चलती रहती है।-Date: 2/27/2012 9:01:40 PM, Punjab Kesri 

वसा रहित दूध बेहतर

दूध से मिलने वाले घी एवं मक्खन के अधिक सेवन से शरीर में वसा की मात्रा बढ़ जाती है। शारीरिक श्रम कर इसको खर्च नहीं करने से मोटापा एवं कोलैस्ट्रॉल बढ़ जाता है जबकि दूध एवं दही विटामिन ‘डी’ एवं कैल्शियम के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। ये हड्डियों एवं मांसपेशियों को मजबूत बनाने में सहायक हैं। वहीं एक शोध के मुताबिक वसा रहित यानी बिना मक्खन-घी वाले दूध का सेवन सभी के लिए लाभदायक होता है। यह वसा रहित दूध मोटे लोगों के वजन को 70 प्रतिशत तक कम कर देता है। ऐसे दूध में मौजूद विटामिन ‘डी’ हृदय रोगों की संभावना को रोकता है।-Date: 27/02/2012 12:37:36 AM, PK

Sunday, 26 February 2012

सर्दी-जुकाम की दवा एंटी बायोटिक नहीं!

मौसम के बदलने एवं सर्द-गर्म होने पर सर्दी-जुकाम होना सामान्य बात है। यह श्वास नली में वायरस के संक्रमण के कारण होता है। ऐसे में एंटीबायोटिक दवाएं ली जाती हैं। इस दवा का सर्दी-जुकाम फैलाने वाले वायरस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। ब्रिटेन में स्वास्थ्य एजैंसी द्वारा कराए गए एक शोध के मुताबिक एंटीबायोटिक हर बीमारी की दवा नहीं है। शोध के अनुसार इनसे सर्दी-जुकाम के रोगी को लाभ की बजाय नुक्सान होता है, रोगों से लडऩे की क्षमता घट जाती है।-Date: 26/02/2012 8:16:59 AM, PK

Saturday, 25 February 2012

क्या आपकी होशियारी के लिए आपकी जीन जिम्मेदार हैं?

वाशिंगटन: वैज्ञानिकों ने अब यह दावा किया है कि यदि कोई इंसान अधिक होशियार है तो उसमें उसके अधिकतर जीन का कोई हाथ नहीं है। हार्वड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का कहना है कि बुद्धिमता और जीन संरचना मे कोई अधिक संबंध नहीं है। अपने शोध में उन्होंने पाया कि जीन की संरचना बार बार दोबारा अपने को दोहराने में नाकाम रही।उन्होंने बताया कि सिर्फ एक जीन ही होशियारी पर प्रभाव डालती हुई मालूम होती है, जिसका प्रभाव भी बहुत ही कम है। शोध दल के सदस्य क्रिस्टोफर चाबरिस ने बताया कि यह पता लगाना बहुत ही मुश्किल है कि कौन सी जीन बुद्धिमता पर असर डाल सकती है। हालांकि दल का मानना है कि 10-15 सालों बाद ऐसी तकनीक विकसित की जा सकेगी जिससे ऐसा पता लगाया जा सके।-Date: 25/02/2012 2:21:15 PM, PK

Friday, 24 February 2012

...तो घट सकता है हार्ट अटैक का खतरा!

वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर आप हृदयाघात के जोखिम को कम करना चाहते हैं तो संतरे और कीनू खाएं। विज्ञान पत्रिका ‘स्ट्रोक’ में प्रकाशित खबर के मुताबिक, ईस्ट एंग्लिया विश्वविद्यालय के नॉर्विक मेडिकल स्कूल के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने शोध में पाया कि अपने प्रदाहनाशी प्रवृति के कारण संतरे और कीनू ‘मस्तिष्क आघात’ के जोखिम को कम कर सकते हैं।

अपने अनुसंधान के लिए अनुसंधानकर्ताओं ने 68,622 महिलाओं पर अध्ययन किया है। डेली मेल में प्रकाशित खबर के मुताबिक, जिन महिलाओं ने खट्टापन लिए हुए स्वाद वाले फल का सेवन ज्यादा किया उनमें ‘मस्तिष्क आघात’ का जोखिम सामान्य महिलाओं की तुलना में 19 प्रतिशत कम था।- Date: 24/02/2012 6:38:31 PM

उम्र के साथ क्यों मांसपेशिया हो जाती हैं कमजोर.....!

वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि अब इस राज का खुलासा हो चुका है कि उम्र बीत जाने के बाद मांसपेशियों में कमजोरी क्यों आ जाती है। उनका मानना है कि ऐसा मांसपेशियों और तंत्रिकाओं के बीच जुड़ाव के खत्म हो जाने के कारण होता है।

अंतराष्ट्रीय दल का कहना है कि इस खोज से उम्रदराज लोगों की मांसपेशियों में आ रही कमजोरी को कम करने और उनके स्वास्थ में बेहतरी लाने के लिये नये रास्ते खुलेंगे। मांसपेशी       

‘पीएलओएस वन ’ जर्नल में छपे इस शोध में वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर आपकी तंत्रिकायें मांसपेशियों से अलग होती जा रही हैं तो आपकी मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं।उम्रदराज लोगों में मांसपेशियों के वजन में कमी आ जाने को ‘सैक्रोपीनिया’ के नाम से जाना जाता है। 60 साल की उम्र से अधिक तकरीबन हर व्यक्ति इसका शिकार हो जाता है। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस खोज से सैक्रोपीनिया को कम करने के उपाय मिलेंगे और मांसपेशियों को कमजोर होने से बचाया जा सकेगा।-Date: 24/02/2012 3:48:20 PM, PK

स्तन कैंसर का नया जीन खोजा

वाशिंगटन : वैज्ञानिकों ने एक नए जीन को खोजा है जो स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि उनके इस अनुसंधान का परिणाम मरीजों को यह जानने में मदद कर सकता है कि उनमें कैंसर के विकसित होने का कितना खतरा है।

फिनलैंड में हुए एक नए अनुसंधान में वैज्ञानिकों ने पाया है कि ‘एब्राक्सास’ नामक उत्परिवर्तित जीन स्तन कैंसर को अनुवांशिक बनाने के लिए जिम्मेदार है।-24/2/2012 4:41:24 AM, PK

Thursday, 23 February 2012

महिलाओं को अवसाद का शिकार बना सकता है माइग्रेन!

ह्यूस्टन :जिन महिलाओं को माइग्रेन की समस्या है या कभी रही है उनके अवसाद ग्रस्त (Depressed) होने की संभावना सामान्य महिलाओं की तुलना में ज्यादा होती है।

कल ही जारी हुए एक अनुसंधान के परिणाम के मुताबिक माइग्रेन से ग्रस्त महिलाओं के अवसाद ग्रस्त होने की संभावना सामान्य महिलाओं की तुलना में करीब 40 प्रतिशत अधिक होती है।

अमेरिकन अकादमी ऑफ न्यूरोलॉजी के एक फेलो टोबियस कुर्थ का कहना है, ‘‘माइग्रेन की समस्या और उसके कारण अवसाद ग्रस्त होने के बारे में यह पहला सबसे बड़ा शोध है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमें आशा है कि हमारे अनुसंधान के परिणाम के बाद डॉक्टर अपने माइग्रेन ग्रस्त मरीजों से अवसाद के रिस्क के बारे में बात कर सकेंगे और उन्हें अवसाद से बचाव के तरीकों के बारे में बात कर सकेंगे।’’-Date: 2/23/2012 7:59:24 PM, PK

मिनटों में हृदयाघात का पता लगा लेगा विशेष तौर पर तैयार जैकेट!

लंदन: वैज्ञानिकों ने खास तरह से विकसित एक जैकेट विकसित किया है जो कुछ ही मिनटों में हृदयाघात का पता लगा सकता है। उनका दावा है कि इस जैकेट से हृदयाघात के मरीजों का इलाज आसान हो जाएगा।

कन्वेंशनल इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ प्रौद्योगिकी ‘ईसीजी’ पिछले 60 वर्षों से प्रचलन में है लेकिन इसमे मरीज को रक्त जांच के रिपोर्ट के लिए करीब 12 घंटे इंतजार करना पड़ता है। इस दौरान हृदयाघात से होने वाली समस्या बढ़ती ही जाती है।

अनुुसंधानकर्ताओं ने बताया कि ब्रिटिश कंपनी द्वारा बनाया गया यह नया जैकेट हृदयाघात के बारे में डॉक्टरों को कुछ ही मिनटों में सारी विस्तृत जानकारियां डॉक्टरों को मुहैया करा सकता है जिससे इलाज में काफी आसानी होगी।  

इस जैकेट का उपयोग सबसे पहले ब्रिटेन का ब्रैडफोर्ड रॉयल इनफिरमरी में किया जाएगा। हृदयाघात के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए इस जैकेट में 80 सेंसर लगे हैं जिन्हें मरीज के सीने से जोड़ा जाएगा।
ब्रैडफोर्ड रॉयल इनफारमरी के फिजिशीयन डॉक्टर जेम्स डूनबार ने बताया कि ‘इस कार्डियक बनियान से हृदयाघात के मरीजों के इलाज में तेजी आएगी और यह हृदय रोगों के लक्षणों की भी पहचान कर सकता है।’-Date: 2/23/2012 6:57:21 PM, PK

गर्भावस्था के दौरान मां के भोजन पर निर्भर है बच्चों के खाने की आदतें!

लंदन: महिलाओं के लिये सलाह। अगर आप अपनी गर्भावस्था में विभिन्न प्रकार और स्वाद का भोजन करती हैं तो आपका बच्चा भी खाने में कम नखरे करने वाला होगा।

फ्रांस के वैज्ञानिकों ने करीब एक दशक की खोज के बाद पाया है कि गर्भावस्था के आरंभ के कुछ सप्ताह से लेकर कुछ महीनों के बीच बच्चों को भोजन की जैसी खुशबू और स्वाद मिलता है खाने के बारे में उसकी पसंद भी वैसी ही विकसित होती है।

अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि कुछ मामलों में मां जो भोजन करती है गर्भ में पल रहा बच्चा भी उसी भोजन को पसंद करता है। दिजोन के बॉरगोग्ने विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता डॉक्टर बेनोइस्ट सचाल ने बताया कि ‘गर्भावस्था के दौरान गर्भनाल बच्चे से जुड़ा होता है और मां जो भी खाती है वह थोड़ी मात्रा में बच्चे के भीतर जाता है। बच्चों में जिस अवधि में दिमाग का विकास हो रहा होता है उस दौरान मां के गर्भनाल के माध्यम से उन्हें मिलने वाला भोजन उनकी पसंद बन जाता है।’

अपने प्रयोग के दौरान डॉक्टर सचाल ने कुछ गर्भवती महिलाओं को विशेष भोजन कराया और कुछ को सामान्य भोजन दिया। उनके बच्चों के बड़े होने के बाद अनुसंधान दल ने पाया कि जिन महिलाओं को विशेष भोजन दिया गया था उनके बच्चों को भी वही खाना पसंद है।-Date: 2/23/2012 6:32:19 PM, PK

Wednesday, 22 February 2012

मस्तिष्क ज्वर से दूर रहने के लिए हर बार खाने के बाद करिए ब्रश

लंदन: अभी तक हम यह समझ रहे थे कि हर बार खाने के बाद ब्रश करने से केवल सांस संबंधी बदबू, कैविटी और मसूडों संबंधी रोगों से मुक्ति मिलती है, लेकिन अब नये अध्ययन में खुलासा हुआ है कि यह आदत आपको मस्तिष्क ज्वर से भी दूर रखने में मदद कर सकती है।

द डेली टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक स्विटरजलैंड के अनुसंधानकताओं को मुंह के सामान्य प्रकार के बैक्टीरिया और मस्तिष्क ज्वर के बीच संबंध नजर आया।

दरअसल मस्तिष्क ज्वर मस्तिष्क और मेरूदंड को ढ़कने वाली भित्ति से संबद्ध बैक्टीरियाई संक्रमण है। ज्यूरिख में अनुसंधानकर्ताओं को स्टे्रप्टोकोकस टिगरिनस नामक नवीनतम बैक्टेरिया मस्तिष्क ज्वर के रोगियों के रक्त में मिला। उन्हें यह बैक्टेरिया स्पोंडायलोडिसिटीस के रोगियों में भी मिला। मुख्य अनुसंधानकर्ता डॉ. एंड्रिया ज्बिनदेन ने कहा कि इस बैक्टेरिया में गंभीर बीमारी पैदा करने की क्षमता लगती है। दरअसल मसूड़े से जहां से रक्त निकल रहा है, वहां से यह बैक्टेरिया रक्त में पहुंच सकता है। हालांकि उसके खास जोखिम को तय नहीं किया जा सका है।-Date: 2/22/2012 5:39:37 PM, PK

Wednesday, 8 February 2012

पहले पुरुष ही क्यों कहते हैं, ‘‘मैं तुमसे प्यार करता हूं’’ "आईलवयू"

पहले पुरुष ही क्यों कहते हैं, ‘‘मैं तुमसे प्यार करता हूं’’
२९.०१.१२
क्या कभी आपको इस बात को लेकर आश्चर्य हुआ है कि पहले पुरुष ही क्यों महिला से कहते हैं, ‘‘मैं तुमसे प्यार करता हूं।’’ इसकी वजह है कि पुरुष अपनी बात बिना किसी लाग-लपेट के रखते हैं। पेन्सिलवेनिया स्टेट यूनिवॢसटी के अनुसंधानकत्र्ताओं ने कहा, ‘‘यौन जरूरतों को पूरा करने वाली कोई भी रणनीति पुरुषों के लिए लाभकारी है और इसमें प्रेम की घोषणा भी शामिल है। ’’
इन अनुसंधानकत्र्ताओं ने अपने इस अध्ययन के लिए 25 वर्ष से कम उम्र के 171 युवक-युवतियोंं से बातचीत की। हालांकि 87 फीसदी लोगों ने कहा कि वे मानते हैं पहले महिलाएं ही प्यार में पड़ती हैं।
पुरुषों ने कहा कि उन्हें यह समझने में महज कुछ सप्ताह लगे कि वे प्यार में फंस गए हैं जबकि महिलाओं ने कहा कि ऐसा एहसास होने में कुछ महीने लगे। फिर उनमें यौनेच्छा जागती है।-पंजाब केसरी

लड़के तपाक से बोलते हैं- आई लव यू
३१.०१.१२ 
एक अध्ययन के मुताबिक लड़कों की तुलना में लड़कियां प्यार हो जाने के बाद भी आई लव यू बोलने से परहेज करती हैं.
अमरीका के पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी में इस विषय पर शोध किया गया कि आख़िर लड़कियां क्यों आई लव यू नहीं बोल पाती हैं.
तो नतीजा निकला कि लड़कियां पहले निश्चिंत होना चाहती हैं कि प्यार किस मोड़ पर है, दूसरी ओर लड़के सेक्स के नज़दीक पहुंचने के लिए तुरंत आई लव यू बोल देते हैं.
जबकि अध्ययन के मुताबिक प्यार का एहसास सबसे पहले लड़कियों के दिल में पनपता है. जिन 171 लड़के लड़कियों पर सर्वे किया गया उनमें से 87 फीसदी का कहना था कि लड़कियां प्यार की शुरुआत करती हैं, लेकिन इसका इजहार करने से पहले सोचती हैं.
इसमें सेक्स की भावना भी अहम है. प्यार के बाद लड़के जहां हफ्ते भर के भीतर ही शारीरिक संबंध बनाने के लिए उत्सुक हो जाते हैं, वहीं लड़कियों को इसके लिए मानसिक तौर पर तैयार होने में महीनों लग जाते हैं.
सर्वे में शामिल 64 फीसदी लड़कों ने माना कि उन्होंने सबसे पहले अपने पार्टनर को आई लव यू कहा, जबकि पहले ये बोलने वाली लड़कियों का प्रतिशत सिर्फ 18 था|

रिश्ते टूटने पर पुरुष होते है अधिक आहत!


लंदन, 10 जून २०१० | पुरुष महिलाओं से बलशाली और बहादुर चाहे नजर आयें लेकिन रिश्तों में दरार आने अथवा टूटने पर उन्हें अधिक तकलीफ होती है. अमेरिका में वाके फोरेस्ट यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि किसी महिला से संबंधों में खटास आने पर युवा पुरुष के दिलोदिमाग पर जबर्दस्त असर पड़ता है.

वजह यह है कि महिलायें जहां अपने तनाव को मित्रों में साझा कर लेती है वहीं पुरुष भीतर ही भीतर घुटने लगता है और नकारात्मक सोच उसके जेहन में घर कर जाती है. नतीजनतन वह शराब जैसी लत का दामन पकड़ लेता है.

अध्ययन के नेता प्रोफेसर रॉबिन शिमन ने स्वीकार किया कि वह नतीजों को देखकर हैरत में पड़ गयीं क्योंकि आम सोच यह थी कि रिश्तों में भावात्मक उथलपुथल की शिकार महिलायें जल्द हो जाती है. डेली मेल ने उनके हवाले से कहा ‘आश्चर्य हुआ यह जानकर कि रिश्तों में उतार चढ़ाव का युवकों पर अधिक प्रतिक्रिया होती है.’ लेकिन अगर रोमांस सही चल रहा है तो पुरुष अधिक लाभान्वित रहता है.

सर्वेक्षण 1000 अवैवाहिक युवक युवतियों पर किया गया जिनकी उम्र 18 से 23 साल के बीच थी. शिमन ने कहा कि सर्वेक्षण से यह बात सामने आयी कि युवक बहुत कम लोगों में विश्वास करते हैं जबकि महिलायें अपने परिजनों और मित्रों के साथ अधिक करीबी संबंध रखती हैं. इसकी एक वजह युवकों में पहचान और आत्मसम्मान की अधिक भावना भी है.

उनके अनुसार एक तथ्य यह है कि पुरुष और महिला अलग-अलग तरीके से भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं. ‘महिलाओं में भावात्मक पीड़ा अवसाद में झलकती है जबकि पुरुषों में यह ठोस समस्यायें लेकर सामने आती है.’ मानसिक स्वास्थ्य पर लंबे अध्ययन और प्रौढ़ होने की प्रक्रिया पर किया गया यह अध्ययन हेल्थ एण्ड सोशल बिहेवियर नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.

अंगूर का अर्क लड़ेगा ब्लड कैंसर से

ब्लड कैंसर के इलाज की दिशा में अच्छी खबर है। नई रिसर्च के मुताबिक अंगूर का अर्क ब्लड कैंसर के लिए जिम्मेदार ल्यूकेमिया सेल्स को मरने के लिए मजबूर कर देता है। यूनिवर्सिटी ऑफ केंटुकी के शोधकर्ताओं ने पाया है कि इस अर्क के इस्तेमाल के 24 घंटे के भीतर ही ल्यूकेमिया की 76 फीसदी कोशिकाएं मर जाती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि अंगूर का यह अर्क जेएनके को सक्रिय कर देता है। जेएनके एक ऐसा प्रोटीन है जो सेल की मौत की प्रक्रिया को संचालित करता है। 

हालांकि अंगूर के अर्क ने इसके पहले त्वचा, स्तन, आंत, फेफड़ा, पेट व प्रोस्टेटग्रंथि के कैंसरों सहित कई सारे प्रयोगशाला कैंसर सेल में अपना असर दिखाया था, लेकिन इस अर्क का ब्लड संबंधी कैंसर में कभी भी परीक्षण नहीं किया गया था। इस शोध पत्र के सह लेखक, ब्रिटेन में ग्रैजुएट सेंटर फॉर टॉक्सिकोलॉजी के प्रफेसर जियांगलिन शाइ ने कहा कि पहले के ये नतीजे ब्लड संबंधी कैंसर को रोकने या उसके इलाज में अंगूर के अर्क जैसे एजेंट्स के इस्तेमाल के लिए उलझनें पैदा कर सकते हैं। 

हर व्यक्ति एक ऐसा रासायनिक एजेंट चाहता है, जो कैंसर कोशिका पर तो प्रभावी हो लेकिन सामान्य कोशिका को मुक्त छोड़ दे। इस लिहाज से यह स्पष्ट है कि अंगूर का अर्क इस कैटिगरी के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। वर्ष 2006 में अमेरिका में ल्यूकेमिया, लिम्फोमा व मायलोमा जैसे ब्लड संबंधी कैंसर के कुल 1,18,310 नए मामले सामने आए। इनमें से 54,000 मामलों में रोगियों की मौत हो गई। स्त्रोत : नव भारत टाइम्स, ०१.०१.२००९