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Sunday, 9 December 2012

भारत में महिलाओं की स्थिति सबसे बुरीः सर्वे

दुनिया के कुछ संपन्न देशों में महिलाओं की स्थिति के बारे में हुए एक शोध में भारत आख़िरी नंबर पर आया है.

थॉम्सन रॉयटर्स फ़ाउंडेशन के इस सर्वेक्षण में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और हिंसा जैसे कई विषयों पर महिलाओं की स्थिति की तुलना ली गई.

स्थिति जानने के लिए इन देशों में महिलाओं की स्थितियों का अध्ययन करनेवाले 370 विशेषज्ञों की राय ली गई.

सर्वेक्षण 19 विकसित और उभरते हुए देशों में किया गया जिनमें भारत, मेक्सिको, इंडोनेशिया, ब्राज़ील सउदी अरब जैसे देश शामिल हैं.

भारत के पड़ोसी पाकिस्तान और बांग्लादेश सर्वेक्षण में शामिल नहीं किए गए.

सर्वेक्षण में कनाडा को महिलाओं के लिए सर्वश्रेष्ठ देश बताया गया. सर्वेक्षण के अनुसार वहाँ महिलाओं को समानता हासिल है, उन्हें हिंसा और शोषण से बचाने के प्रबंध हैं, और उनके स्वास्थ्य की बेहतर देखभाल होती है.

पहले पाँच देशों में जर्मनी, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस जैसे देश रहे. अमरीका छठे नंबर पर रहा.

भारत

सर्वेक्षण में भारत की स्थिति को सउदी अरब जैसे देश से भी बुरी बताया गया है जहाँ महिलाओं को गाड़ी चलाने और मत डालने जैसे बुनियादी अधिकार हासिल नहीं हैं.

सर्वेक्षण कहता है कि भारत में महिलाओं का दर्जा दौलत और उनकी सामाजिक स्थिति पर निर्भर करता है.

भारत के 19 देशों की सूची में सबसे अंतिम पायदान पर रहने के लिए कम उम्र में विवाह, दहेज, घरेलू हिंसा और कण्या भ्रूण हत्या जैसे कारणों को गिनाया गया है.

सर्वेक्षण में कहा गया कि भारत में सात वर्ष पहले बना घरेलू हिंसा क़ानून एक प्रगतिशील कदम है, मगर लिंग के आधार पर भारत में हिंसा अभी भी हो रही है.

इसके अनुसार विशेष रूप से अल्प आय वाले परिवारों में ऐसी हिंसा अधिक होती है.

भारत में ऐसी बहुत सारी महिलाएँ हैं जो सुशिक्षित और पेशेवर हैं और उन्हें हर तरह की आजादी और पश्चिमी जीवन शैली हासिल है.

सर्वेक्षण कहता है कि भारत में पहले एक महिला प्रधानमंत्री रह चुकी है और अभी देश की राष्ट्रपति एक महिला है, मगर ये तथ्य गाँवों में महिलाओं की स्थिति से कहीं से भी मेल नहीं खाते.

सर्वेक्षण के अनुसार भारत में दिल्ली और इसके आस-पास आए दिन महिलाओं के राह चलते उठा लिए जाने और चलती गाड़ी में सामूहिक बलात्कार होने की खबरें आती रहती हैं.

अखबारों में भी देह व्यापार के लिए महिलाओं की तस्करी और शोषण की खबरें छपती रहती हैं.

सर्वेक्षण कहता है कि कई मामलों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाज में स्वीकार्य भी समझा जाता है.

इसमें एक सरकारी अध्ययन का उल्लेख किया गया है, जिसमें 51 प्रतिशत पुरूषों और 54 प्रतिशत महिलाओं ने पत्नियों की पिटाई को सही ठहराया था.

बुधवार, 13 जून, 2012 हिंदी बी बी सी समाचार

अकेले रहने वाले लोगों में डिप्रेशन का खतरा

एक अध्ययन के अनुसार वे लोग जो अकेले रहते हैं, उनमें परिवार के साथ रह रहे लोगों की तुलना में डिप्रेशन में जाने का खतरा ज्यादा होता है। वास्तव में कामकाजी लोग जो अकेले रहते हैं उनमें डिप्रेशन विकसित होने का खतरा 80 % बढ जाता है। अध्ययन के अनुसार, कामकाजी पुरूषों और महिलाओं के बीच में डिप्रेशन का प्राथमिक कारक सामाजिक समर्थन प्रणाली की कमी पुरूषों में और महिलाओं में घर की खराब स्थिति है। 

यह अध्ययन 3500 पुरूषों और महिलाओं पर नजर रखकर एण्टी डिप्रेसेंट का प्रयोग करके किया गया। जो लोग अकेले या किसी के साथ रहते थे उनपर 2000 में सर्वे किया गया और उनके रहन-सहन की स्थिति के बारे में पूछताछ की गई। इसके अलावा उन लोगों के बारे में जलवायु, जीवनशैली, सामाजिक समर्थन, कर्मचारी की स्थिति, आय और अन्य जानकारी भी जुटाई गई। अध्ययन करने वाले लेखक ने पाया कि अकेले रहने वाले व्यक्ति के घर में विकास हुआ है। अवसादरोधी के सेवन करने वालों का विश्लेषण करने के पीरियड में यह पाया कि जो लोग अकेले रहते हैं उनमें 80% लोगों ने एण्टी डिप्रेसेंट दवाईयां ज्यादा खरीदी हैं उन लोगों की तुलना में जो अकेले नहीं रहते हैं। 

यह अध्ययन डा पुलक्की रेबेक के नेतृत्व में हुआ, उन्होंने कहा कि दिमागी समस्याओं का खतरा अकेले रहने वाले लोगों में ज्यादा होता है। शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया कि अकेले रहने वाले लोगों में डिप्रेशन एकांत में रहने के कारण होता है। शोधकर्ताओं के अनुसार जो लोग अकेले रहते हैं उनके जज्बातों के लिए भावनात्मक सहारा या समाजिक एकता की भावना नहीं होती है और इसकी वजह से गंभीर दिमागी बीमारी होती है। 

अध्ययन में यह समाधान निकाला गया कि जो लोग अकेले रहते हैं उनको अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए लोगों से मिलना चाहिए और नयी संस्कृति और सामाजिक परिवेश को जानने के लिए एक मंच होना चाहिए। इसके अलावा अध्ययन में यह उजागर हुआ कि जो लोग अकेले रहते हैं उनके उचित इलाज के लिए बातचीत ही बेहतर थेरेपी है। क्योंकि एण्टी डिप्रेसेंट (anti-depressants) का साइड-इफेक्ट लंबे समय तक के लिए हो सकता है।

स्त्रोत : नचिकेता शर्मा , ओन्‍ली माई हैल्‍थ सम्पादकीय विभाग, 14-04-2012

बेटी चाहते हैं ? सुन्दर पार्टनर ढूंढिए

क्या आप भी बेटी चाहते हैं अगर हां तो अपने लिए एक सुन्दर पार्टनर तलाश कीजिए। क्योंकि एक शोध के मुताबिक सुन्दर दिखने वाले जोड़ों की बेटी पैदा होने की संभावना ज्यादा होती है। रिप्रोडक्टिव साइंसेज में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार सुन्दर औरतों और मर्दों में कम सुन्दर दिखने वालों की तुलना में बेटी होने की संभावना ज्यादा होती है।

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की विकासवादी मनोविज्ञानी सातोषी कानजवा ने मार्च 1958 में ब्रिटेन में जन्मे 1700 बच्चों का अध्ययन किया है। उन्होंने सभी बच्चों के बारे में उनके जीवन के अनेक स्तरों का अध्ययन किया। अध्ययन में यह देखा गया कि स्कूल और कॉलेज में इन बच्चों को उनके शिक्षकों ने सुन्दर कहा या बदसूरत। और 45 साल की उम्र में इन्हीं लोगों से उनके बच्चों और बच्चों के लिंग के बारे में पूछा गया।

सभी आंकड़ों को जमा करने के बाद कानजवा ने पाया कि अध्ययन के लिए लिए गए नमूने वाले लोगों में से 84 प्रतिशत लोगों को बेटे और बेटियां दोनों हुई, जबकि जो लोग खूबसूरत नहीं थे उन्हें बेटे ज्यादा हुए।

कानजवा ने कहा कि शारीरिक तौर पर सुन्दर होना कन्या शिशु तय करने के लिएएक मजबूत निर्धारक है। औसतन बदसूरत लोगों में से 56 में बेटे के माता-पिता बनने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। उनका मानना है कि हम बच्चों के लिंग को सुन्दरता के साथ जोड़कर जिस लिंग के बच्चे चाहें पैदा कर सकते हैं।

मर्दों के लिए यह बात हमेशा आसान रहती है, क्योंकि वे शादी के रिश्ते में हों या फिर अफेयर की बात हो अपने लिए एक सुन्दर पार्टनर ही खोजते हैं। मगर औरतें सिर्फअफेयर के लिए ही सुन्दरता को देखती हैं, दीर्घकालिक बंधन के लिए वे हमेशापैसे, सामाजिक स्थिति जैसी चीजों को देखती हैं।
स्त्रोत : शोध व् शेर्वे प्रस्तुतकर्ता बी एस पाबला पर 5:00 am , लेबल: रिश्ते, शारीरिक सम्बन्ध, सुन्दरता, बृहस्पतिवार, 16 जून 2011 

Wednesday, 8 February 2012

पहले पुरुष ही क्यों कहते हैं, ‘‘मैं तुमसे प्यार करता हूं’’ "आईलवयू"

पहले पुरुष ही क्यों कहते हैं, ‘‘मैं तुमसे प्यार करता हूं’’
२९.०१.१२
क्या कभी आपको इस बात को लेकर आश्चर्य हुआ है कि पहले पुरुष ही क्यों महिला से कहते हैं, ‘‘मैं तुमसे प्यार करता हूं।’’ इसकी वजह है कि पुरुष अपनी बात बिना किसी लाग-लपेट के रखते हैं। पेन्सिलवेनिया स्टेट यूनिवॢसटी के अनुसंधानकत्र्ताओं ने कहा, ‘‘यौन जरूरतों को पूरा करने वाली कोई भी रणनीति पुरुषों के लिए लाभकारी है और इसमें प्रेम की घोषणा भी शामिल है। ’’
इन अनुसंधानकत्र्ताओं ने अपने इस अध्ययन के लिए 25 वर्ष से कम उम्र के 171 युवक-युवतियोंं से बातचीत की। हालांकि 87 फीसदी लोगों ने कहा कि वे मानते हैं पहले महिलाएं ही प्यार में पड़ती हैं।
पुरुषों ने कहा कि उन्हें यह समझने में महज कुछ सप्ताह लगे कि वे प्यार में फंस गए हैं जबकि महिलाओं ने कहा कि ऐसा एहसास होने में कुछ महीने लगे। फिर उनमें यौनेच्छा जागती है।-पंजाब केसरी

लड़के तपाक से बोलते हैं- आई लव यू
३१.०१.१२ 
एक अध्ययन के मुताबिक लड़कों की तुलना में लड़कियां प्यार हो जाने के बाद भी आई लव यू बोलने से परहेज करती हैं.
अमरीका के पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी में इस विषय पर शोध किया गया कि आख़िर लड़कियां क्यों आई लव यू नहीं बोल पाती हैं.
तो नतीजा निकला कि लड़कियां पहले निश्चिंत होना चाहती हैं कि प्यार किस मोड़ पर है, दूसरी ओर लड़के सेक्स के नज़दीक पहुंचने के लिए तुरंत आई लव यू बोल देते हैं.
जबकि अध्ययन के मुताबिक प्यार का एहसास सबसे पहले लड़कियों के दिल में पनपता है. जिन 171 लड़के लड़कियों पर सर्वे किया गया उनमें से 87 फीसदी का कहना था कि लड़कियां प्यार की शुरुआत करती हैं, लेकिन इसका इजहार करने से पहले सोचती हैं.
इसमें सेक्स की भावना भी अहम है. प्यार के बाद लड़के जहां हफ्ते भर के भीतर ही शारीरिक संबंध बनाने के लिए उत्सुक हो जाते हैं, वहीं लड़कियों को इसके लिए मानसिक तौर पर तैयार होने में महीनों लग जाते हैं.
सर्वे में शामिल 64 फीसदी लड़कों ने माना कि उन्होंने सबसे पहले अपने पार्टनर को आई लव यू कहा, जबकि पहले ये बोलने वाली लड़कियों का प्रतिशत सिर्फ 18 था|

रिश्ते टूटने पर पुरुष होते है अधिक आहत!


लंदन, 10 जून २०१० | पुरुष महिलाओं से बलशाली और बहादुर चाहे नजर आयें लेकिन रिश्तों में दरार आने अथवा टूटने पर उन्हें अधिक तकलीफ होती है. अमेरिका में वाके फोरेस्ट यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि किसी महिला से संबंधों में खटास आने पर युवा पुरुष के दिलोदिमाग पर जबर्दस्त असर पड़ता है.

वजह यह है कि महिलायें जहां अपने तनाव को मित्रों में साझा कर लेती है वहीं पुरुष भीतर ही भीतर घुटने लगता है और नकारात्मक सोच उसके जेहन में घर कर जाती है. नतीजनतन वह शराब जैसी लत का दामन पकड़ लेता है.

अध्ययन के नेता प्रोफेसर रॉबिन शिमन ने स्वीकार किया कि वह नतीजों को देखकर हैरत में पड़ गयीं क्योंकि आम सोच यह थी कि रिश्तों में भावात्मक उथलपुथल की शिकार महिलायें जल्द हो जाती है. डेली मेल ने उनके हवाले से कहा ‘आश्चर्य हुआ यह जानकर कि रिश्तों में उतार चढ़ाव का युवकों पर अधिक प्रतिक्रिया होती है.’ लेकिन अगर रोमांस सही चल रहा है तो पुरुष अधिक लाभान्वित रहता है.

सर्वेक्षण 1000 अवैवाहिक युवक युवतियों पर किया गया जिनकी उम्र 18 से 23 साल के बीच थी. शिमन ने कहा कि सर्वेक्षण से यह बात सामने आयी कि युवक बहुत कम लोगों में विश्वास करते हैं जबकि महिलायें अपने परिजनों और मित्रों के साथ अधिक करीबी संबंध रखती हैं. इसकी एक वजह युवकों में पहचान और आत्मसम्मान की अधिक भावना भी है.

उनके अनुसार एक तथ्य यह है कि पुरुष और महिला अलग-अलग तरीके से भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं. ‘महिलाओं में भावात्मक पीड़ा अवसाद में झलकती है जबकि पुरुषों में यह ठोस समस्यायें लेकर सामने आती है.’ मानसिक स्वास्थ्य पर लंबे अध्ययन और प्रौढ़ होने की प्रक्रिया पर किया गया यह अध्ययन हेल्थ एण्ड सोशल बिहेवियर नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.